लेखक:
वैभव कुमार सक्सेना
वैभव कुमार सक्सेना जन्म - 22 सितम्बर 1996 मध्यप्रदेश में विदिशा शहर के कायस्थ परिवार में सन् 1996 को इनका जन्म हुआ। यह 23 वर्ष के एक युवा लेखक हैं। इन्होंने साहित्य के सफर की शुरुआत पहले गीत “ख्वाहिशें जो थी मेरी ; कुछ संवर गई, कुछ बिखर गईं” से की थी। अब तक यह “पूरे दिन की धूप सहकर धरती को शाम नसीब होती है”, “आज फिर आया बचपन मेरे सपने में” और “परी क्यों कहती हो मां” जैसी कई संवेदनशील कविताएं लिख चुके हैं। इन्होंने गज़लों में “अनजाने शहर का भी अजीब सफर है, लोग मिलते हैं बिछड़ जाने के लिए", "दूर ले जाता है जो वक्त मुझे तुझसे, मैं उस वक्त को फकीर समझता हूं” और “मोहब्बत एक तारीफ है जो अक्सर हम तुम्हारी किया करते हैं” जैसी कई ग़ज़ल लिख चुके हैं । यह इनके द्वारा लिखा गया यह तीसरा उपन्यास है इससे पहले "इंजीनियरिंग गर्ल" और "जिंदगी से मोहब्बत या फिर जिंदगी से लड़ाई” दो उपन्यास लिख चुके हैं। वर्तमान में महाराष्ट्र के जलगांव शहर स्थित ओरिएंट कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्य कर रहे हैं। साथ ही फिल्मी गीत व फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखने के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं। हिंदी फिल्मों के महान गीतकार आनन्द बख्शी को यह अपना आदर्श मानते हैं।
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पलायनवैभव कुमार सक्सेना
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गुजरात में कार्यरत एक बिहारी मजदूर की कहानी आगे... |